भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रतीक्षा / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:11, 8 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)
रचनाकारः अनिल जनविजय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
छह गुड़िया रखी हैं सामने मेरे
वैसी की वैसी
जैसी रख गई थी वह ख़ुद उन्हें
शेष है इनमें
उसकी उपस्थिति, उसका प्यार, उसकी बातें
उसके प्रश्न, मेरे उत्तर, खिलखिलाहटें
उसके नखरे, उसकी अदाएँ और नाराज़ी
उसके खेल, उछल-कूद और आज़ादी
उसका रोना, उसका रूठना, मेरे वादे
मन में बसी हैं उसकी जो सलोनी यादें
आएगी वह
गुड़ियों को नहलाएगी वह
मुझको ख़ूब हँसाएगी वह
पापा, पप्पा, पापुश्का
मुझको बुलाएगी वह
नाचेगी ख़ुद घर भर में
और मुझको भी नचाएगी वह
घोड़ा मुझे बनाएगी वह
परसों वापिस आएगी वह
1989 में रचित