ऊपर
गर्जन-तर्जन करते,
मेघ मंडलाकार घहरते,
क्षण-क्षण
कोप कटाक्ष तड़ित से,
भयाक्रांत
अम्बर को करते।
नीचे,
नदिया केन किशोरी,
माँ धरती के आँगन में-
प्रवहमान है
धीर नीर से भरी-भरी,
पुलकित लहरों से सँवरी
छल-छलना वाले मेघों से
नहीं डरी।
रचनाकाल: २९-०८-१९९१