भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शाम / आन्ना अख़्मातवा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 16 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा |संग्रह= }} Category:रूसी भाषा <Poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: आन्ना अख़्मातवा  » शाम

शॉल के पीछे अपने हाथों को मज़बूती से जकड़ लेती हूँ मैं
इतनी ज़र्द क्यों दिख रही हूं आज की शान
... शायद मैंने ज़्यादा ही पिला दी थी उसे
दुःख और हताशा की कड़वी शराब

कैसे भूल सकती हूँ! -- वह बाहर चला गया था,
दर्द की रेखा में खिंचे हुए थे उसके होंठ
पगलाई सी मैं दौड़ती चली गई थी
सीढ़ियाँ उतर कर उसके पीछे, सड़क तक

मैं चिल्लाई: "मैं तो मज़ाक कर रही थी, सच्ची!
मुझे ऐसे छोड़कर मत जाओ, मैं मर जाऊँगी" - और
एक भयानक, ठण्डी मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर
उसने हिदायत दी मुझे: "बाहर हवा में मत खड़ी रहो!"


अंग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह