भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कल्पना जल्पना / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:40, 15 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल जनविजय |संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय }} राम...)
राम नाम लो
अल्लाह को मारो
इस तरह अपना काज सँवारो
एक जाति हो, एक नस्ल हो
बाकी सबको फेंक बुहारो
हिन्दू राष्ट्र की कल्पना है
न रहें ईसाई
न पारसी भाई
यहूदी से भी न कोई मिताई
इन सबसे भला अपना क्या नाता
ये सब हैं हिन्दू का काँटा
रक्त सनी एक अल्पना है
सिर्फ़ हिन्दू हों
जाति है देसी
बाकी धर्मों के लोग विदेशी
मारो-मारो मार भगाओ
भारत में भगवा फहराओ
उनकी बस यही जल्पना है
हिन्दू राष्ट्र की कल्पना है
(रचनाकाल: 2002)