Last modified on 12 जून 2007, at 20:18

हरे सलवार कुर्ते में / अनिल जनविजय

Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 20:18, 12 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रचनाकारः अनिल जनविजय

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~


हरे सलवार कुरते में

तुम आईं उस दिन

और मैं पुस्तकालय के

बाहर खड़ा था

तुमने मुझसे मिलने का

वायदा जो किया था

सिर तुम्हारा उस समय

हरी चुन्नी से ढका था


तुम आईं मेरे पीछे से

और धीमे से पुकारा

अनि...अनि...

सुनकर भी जैसे अनसुना

कर दिया मैंने

मैं तुम्हारे ध्यान में

मग्न बड़ा था


तुमने मुझे लाड़ में

हौले से कौंचा

मुड़कर जो देखा मैंने तो

हो गया भौंचक

वृक्ष जैसे पीछे कोई

मोती जड़ा था


(1996)