भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने कहा / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
Lina niaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 21:31, 12 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः अनिल जनविजय Category:कविताएँ Category:अनिल जनविजय ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...)
रचनाकारः अनिल जनविजय
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
मैंने कहा--
अकेला हूँ मैं मास्को में
वसंत आया मेरे पास भागकर
साथ लाया
टोकरी भर फ़ूल
बच्चों की खिलखिलाहटें
पेड़ॊं पर हरी पत्तियाँ
मैंने कहा--
अकेला हूँ मैं
याद आई तुम्हारी
प्रेम आया
इच्छा आई मन में तुम्हें देखने की
मैंने कहा--
अकेला नहीं हूँ मैं
स्नेह है तुम्हारा मेरे साथ
लगाव है
तुम्हारे चुम्बनों की निशानियाँ हैं
मेरे चेहरे पर अमिट
स्मृति में तुम्हारा चेहरा है
तुम्हारी चंचल शरारतें हैं
मैंने कहा--
अकेला नहीं हूँ मैं
प्रिया है मेरी, मेरे पास
मेरे साथ
(1998)