बज उठी 
घंटी अचानक फ़ोन की 
चिर सुपरिचित 
बोल सुनने को मिले,
याद फिर से आ गई भूली कथा
मन सरोवर में नए शतदल खिले ।
छू गई 
केसर किरन फिर पुतलियॉ 
प्रीति के 
पल्लव लगे फिर डोलने 
टूटकर बिखरे 
समय के साथ जो 
लौटकर वे पल लगे फिर बोलने 
चौकड़ी भरने लगा मन का हिरन 
चल पड़े जो रुक गये थे काफ़िले ।
 
बन्द पलकों में 
उगे मणिद्वीप फिर  
मन चकोरों-सी 
लगन बढ़ने लगी , 
नेह भीगे 
शब्द नूपुर से बजे 
प्रेम की बाती मधुर जलने लगी 
मौन पिघला बर्फ़ की शहतीर-सा 
दूर होने लगा गए शिकवे-गिले ।
  
मन पटल पर 
खिल उठा फिर इन्द्रधनु 
गुलमोहर के 
रंग वाला दिन हुआ, 
ओढकर अहसास की धानी चुनर 
उड़ चला नीले गगन में फिर सुआ 
गीत गाने लग गए पगले नयन 
चल पड़े फिर बन्द थे जो सिलसिले ।