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द्वार खुल गए अब भवनों के, शून्य पथों में
शून्य घाटियों में सरिता के शून्य तटों पर
जाग उठीं जीवन समुद्र की मुखर तरंगें
पृथ्वी के शैलों पर, पृथ्वी के विपिनों पर
पृथ्वी की नदियों पर पड़ी स्वर्ण की छाया
उदित हुए दिनकर इनकी पूजा से घिर कर