भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शेष हैं परछाइयाँ / हरीश निगम

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:28, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश निगम }} <poem> फट गए सारे गुलाबी चित्र सूख कर झ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फट गए
सारे गुलाबी चित्र

सूख कर
झरता हरापन
और उड़ती धूल
शेष हैं परछाइयाँ कुछ
दर्द वाले फूल
टीसते हैं
फाँस जैसे मित्र

एक आदमखोर-चुप्पी
लीलती दिन-रात
और
दमघोटू हवाएँ
हर कदम आघात,
खो गए
काले धुएँ में इत्र