भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़िरंगी का दरबान / हबीब जालिब
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:32, 14 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = हबीब जालिब }} {{KKCatGhazal}} <poem> फ़िरंगी का जो मैं दरबान …)
फ़िरंगी का जो मैं दरबान होता
तो जीना किस क़दर आसान होता
मेरे बच्चे भी अमरीका में पढ़ते
मैं हर गर्मी में इंग्लिस्तान होता
मेरी इंग्लिश बला की चुस्त होती
बला से जो न उर्दू दान होता
झुका के सर को हो जाता जो ‘सर’ मैं
तो लीडर भी अज़ीमुश्शान होता
ज़मीनें मेरी हर सूबें में होतीं
मैं वल्लह सदेर पाकिस्तान होता