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बसंत / महेन्द्र भटनागर
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अंग-अंग में उमंग आज तो पिया,
- बसंत आ गया !
- बसंत आ गया !
दूर खेत मुसकरा रहे हरे-हरे,
डोलती बयार नव-सुगंध को धरे,
गा रहे विहग नवीन भावना भरे,
प्राण ! आज तो विशुद्ध भाव प्यार का
- हृदय समा गया !
- हृदय समा गया !
खिल गया अनेक फूल-पात से चमन ;
झूम-झूम मौन गीत गा रहा गगन,
यह लजा रही उषा कि पर्व है मिलन,
आ गया समय बहार का, विहार का
- नया नया नया !
- नया नया नया !