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बसंत / श्याम किशोर
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बसन्त
एक ज़िन्दा एहसास है
आग का ।
तुम किसी
पेड़,
फूल,
रंग
या ख़ुशबू को
उसका नाम नहीं दे सकते
उस रूप में वह
अधूरा
और
अपाहिज है
जब कि
वह महकता है
जीवित व्यक्ति में
एक आग बन कर
अपने सम्पूर्ण प्रज्ज्वलन
और
मोहकता के साथ