भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इकला चांद / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
इकला चांद
असंख्य तारे,
नील गगन के
खुले किवाड़े;
कोई हमको
कहीं पुकारे
हम आएंगे
बाँह पसारे !