भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थरथराता रहा / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 3 जुलाई 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{एक विचित्र प्रेम अनुभूति}


थरथराता रहा जैसे बेंत

मेरा काय...कितनी देर तक

आपादमस्तक

एक पीपल-पात मैं थरथर ।

कांपती काया शिराओं-भरी

झन-झन

देर तक बजती रही

और समस्त वातावरण

मानो झंझावात

ऎसा क्षण वह आपात

स्थिति का


('प्रतिनिधि कविताएं' नामक संग्रह से)