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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 12

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पद 111 से 120 तक

(111)

श्री केसव! क्हि न जाइ का कहिये।

देखत रव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये।

सून्य भीति पर चित्र , रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।

धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे।।

रबिकर-नीर बसै अति दारून मकर रूप तेहि माहीं।

बदन -हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं।

 कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै ।

तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सेा आपन पहिचानै।