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तुम्हारी याद / अनिल जनविजय

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(मधु सोमानी के लिए)


तुम्हारी याद आती है

जैसे लगती है भूख

लगती है प्यास

आता है गुस्सा

आता है प्यार

जैसे कभी-कभी केलि के बाद

आती है गहरी नींद

वैसे ही आती है याद तुम्हारी


तुम्हारी याद आती है

जैसे कभी किसी बात पर आती है हँसी

किसी-किसी बात पर रोना

कभी अचानक गाने का मन करता है

उछल-कूद हंगामा करने का मन करता है

वैसे ही आती है याद तुम्हारी


तुम्हारी याद आती है

जैसे पेड़ों पर आते हैं फल

जंगल में चहचहाते हैं पक्षी

रात के बाद आता है दिन

और सूरज के बाद निकलता है चाँद

जैसे बदलती हैं ऋतुएँ

एक के बाद एक छह बार

मौसम के घोड़े पर सवार

वैसे ही आती है तुम्हारी याद


(1995 में रचित)