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विनयावली / तुलसीदास / पृष्ठ 24

पद 231 से 240 तक

  (235)

ऐसेहि जनम-समूह सिराने।

प्राणनाथ रघुनाथ-से प्रभु तजि सेवत चरन बिराने।।

जे जड़ जीव कुटिल, कायर, खल, केवल कलिमल-साने।

सूखत बदन प्रसंसत तिन्ह कहँ, हरितें अधिक करि माने।।

सुख हित कोटि उपाय निरंतर करत न पायँ पिराने।

सदा मलीन पंथके जल ज्यों, कबहूँ न हृदय थिराने।।

यह दीनता दूर करिबेको अमित जतन उर आने।

तुलसी चित-चिंता न मिटै बिनु चिंतामनि पहिचाने।।