एकांत श्रीवास्तव
एकांत श्रीवास्तव
जन्म- 8 फरवरी 1964 को छुरा, छत्तीसगढ़ में।
'अन्न हैं मेरे शब्द`, 'मिट्टी से कहूँगा धन्यवाद` और 'बीज से फूल तक` तीन काव्य संकलन प्रकाशित। कविता पर वैचारिक गद्य, निबंध, डायरी लेखन उनके प्रिय विषय हैं।
शरद बिल्लौरे पुरस्कार, केदार सम्मान, दुष्यंत कुमार पुरस्कार, ठाकुर प्रसाद सिंह पुरस्कार और नरेन्द्रदेव वर्मा पुरस्कार से सम्मानित। करेले बेचने आई बच्चियाँ
पुराने उजाड़ मकानों में खेतों-मैदानों में ट्रेन की पटरियों के किनारे सड़क किनारे घूरों में उगी हैं जो लताएँ जंगली करेले की वहीं से तोड़कर लाती हैं तीन बच्चियाँ छोटे-छोटे करेले गहरे हरे कुछ काई जैसे रंग के और मोल-भाव के बाद तीन रुपए में बेच जाती हैं उन तीन रुपयों को वे बांट लेती हैं आपस में तो उन्हें एक-एक रुपया मिलता है करेले की लताओं को ढूंढने में और उन्हें तोड़कर बेचने में उन्हें लगा है आधा दिन तो यह एक रुपया उनके आधे दिन का पारिश्रमिक है मेरे आधे दिन के वेतन से कितना कम और उनके आधे दिन का श्रम कितना ज़्यादा मेरे आधे दिन के श्रम से करेले बिक जाते हैं मगर उनकी कड़वाहट लौट जाती है वापस उन्हीं बच्चियों के साथ उनके जीवन में।