भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह और रोटी / किरण अग्रवाल
Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:48, 14 मई 2011 का अवतरण
उसकी आँखों में एक रोटी थी
गोल-मटोल
भाप उगलती हुई
स्टीम इंजन की तरह
जो पिछली शताब्दी ने दी थी उसे एक सुबह
फिर शताब्दी का राम-नाम सत्य हो गया
ठीक उसकी माँ की तरह
अब वह है और नई शताब्दी
नई शताब्दी की आँखों में नए सपने हैं
ग्लोबलाइजेशन के
नई शताब्दी की आँखों में हैं बिल क्लिंटन और बिल गेट्स
लैपटॉप और मोबाइल्स और इन्टरनेट
और उसकी आँखों में उसकी मरी हुई माँ है
और एक गोल-मटोल रोटी भाप उगलती हुई जो पिछली शताब्दी में उसने खाई थी माँ के हाथों से </poem>