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गीतावली अयोध्याकाण्ड पद 50 से 60/पृष्ठ 1

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(50)
रागमलार

सब दिन चित्रकूट नीको लागत |
बरषाऋतु प्रबेस बिसेष गिरि देखन मन अनुरागत ||

चहुँदिसि बन सम्पन्न, बिहँग-मृग बोलत सोभा पावत |
जनु सुनरेस देस-पुर प्रमुदित प्रजा सकल सुख छावत ||

सोहत स्याम जलद मृदु घोरत धातु रँगमगे सृङ्गनि |
मनहु आदि अंभोज बिराजत सेवित सुर-मुनि-भृङ्गनि ||

सिखर परस घन-घटहि, मिलति बग-पाँति सो छबि कबि बरनी |
आदि बराह बिहरि बारिधि मनो उठ्यो है दसन धरि धरनी ||

जल जुत बिमल सिलनि झलकत नभ बन-प्रतिबिम्ब तरङ्ग |
मानहु जग-रचना बिचित्र बिलसति बिराट अँग अंग ||

मन्दाकिनिहि मिलत झरना झरि झरि भरि भरि जल आछे |
तुलसी सकल सुकृत-सुख लागे मानो राम-भगतिके पाछे ||