भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जी से हटती ही नहीं याद किसी की गुमनाम / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 14 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
जी से हटती ही नहीं याद किसी की गुमनाम
जैसे बीमार के आँगन में बरसती हुई शाम
तू जो परदा न हटाये तो ये किसका है कसूर!
हमने यह रात लिखा दी है तेरे प्यार के नाम
फिर से बिछडे हुए राही जहाँ मिल जायँ कभी
दूर इस राह में ऐसा भी कोई होगा मुकाम
उनसे कहने की तो बातें थी हज़ारों ही, मगर
मुँह भी हम खोल न पाए कि हुई उम्र तमाम
हमने माना बड़ी नाज़ुक है क़लम तेरी गुलाब!
पंखडी भी कभी कर देती है तलवार का काम