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ये हसीं बेकली क्यों सीने में भर गयी है! / गुलाब खंडेलवाल
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ये हसीन बेकली क्यों सीने में भर गयी है!
मेरे दिल के पास आकर वो नज़र ठहर गयी है!
मेरे प्यार की वज़ह से ये हुई है रंगसाजी
मेरी हर नज़र से तेरी रंगत निखर गयी है
वे लटें थीं रात किसकी मेरे बाजुओं पे बिखरीं
मेरे हर ख़याल में एक ख़ुशबू-सी भर गयी है
मुझे हँस के अब बिदा दो, मेरी ज़िन्दगी का ग़म क्या!
ये समझ लो आज दुलहन साजन के घर गयी है
नहीं अब, गुलाब! तुझमें पहले-सी शोख़ियाँ हों
तेरी तड़पनों से कुछ तो दुनिया सँवर गयी है