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शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
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- नागर से हैं खरे तरु कोऊ / शृंगार-लतिका / द्विज
- डोलि रहे बिकसे तरु एकै / शृंगार-लतिका / द्विज
- मिलि माधवी आदिक फूल के ब्याज / शृंगार-लतिका / द्विज
- पाँखुरी लै साजी सेज सेवती की बेलिन / शृंगार-लतिका / द्विज
- औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले / शृंगार-लतिका / द्विज
- मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
- देखत हीं बन फूले पलास / शृंगार-लतिका / द्विज
- नख सौं भुँअ खोदत कोद चहूँ / शृंगार-लतिका / द्विज
- फूले घने, घने-कुंजन माँहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
- ऐसैं बिचारत हीं मति मेरी / शृंगार-लतिका / द्विज