Last modified on 2 जुलाई 2011, at 02:04

नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है / गुलाब खंडेलवाल


नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है
बचाते हुए चोट खाई गयी है!

उठा फूल कैसा अभी बाग़ से यह
हरेक शाख जैसे झुकायी गयी है

ये बाज़ी कोई और ही खेलता है
महज़ चाल हमसे चलायी गयी है

कभी इसका मतलब भी तुम पर खुलेगा
अभी तो हरेक बात आयी-गयी है

गुलाब! अब उसी बाग़ में लौटना है
जहां से ये ख़ुशबू चुराई गयी है