भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छवि को सदन मोद मंडित / घनानंद
Kavita Kosh से
Hemendrakumarrai (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 15:27, 7 जुलाई 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} ::::'''कवित्त'''<br><br> छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद<br> ::...)
- कवित्त
- कवित्त
छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
- तृषित चखनि लाल, कब धौ दिखाय हौ।
- तृषित चखनि लाल, कब धौ दिखाय हौ।
चटकीलो भेख करें मटकीली भाँति सों ही
- मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
- मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
लोचन ढुराय कछु मृदु मुसक्याय, नेह
- भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
- भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रानप्यारे,
- कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।3।।
- कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।3।।