भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतर से मत जाना/ गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कितने जीवन, कितनी बार / ग…)
अंतर से मत जाना
यह संसार भुला भी दे पर तुम मन से न भुलाना
भाग्य भले ही मुझसे ऐंठे
कभी, कहीं सुर-ताल न बैठे
फिर भी तुम प्राणों में पैठे
मंद-मंद मुस्काना
बनाकर पिता, बंधु, गुरु, सहचर
देते रहना बोध निरंतर
और शेष का पथ आने पर
बढ़कर गले लगाना
अंतर से मत जाना
यह संसार भुला भी दे पर तुम मन से न भुलाना