Last modified on 26 मई 2010, at 07:03

पराधीनता-निशा कट गयी / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:03, 26 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=चंदन की कलम शहद में डुबो-…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


प्रथम स्वाधीनता-दिवस के अवसर पर
 
पराधीनता-निशा कट गयी, स्वप्न ब्रिटिश साम्राज्य हुआ है
पहली बार आज ही अपने घर में अपना राज हुआ है
. . .
पलटा दिन, इतिहास, भाग्य ने पुन: आज अँगड़ाई ली है
प्रथम बार खुल गयी सवा मन की श्रृंखला कलाई की है
पराधीनता की वह रजनी, पूछो मत कैसे काटी है
भूल न पाती लिये हृदय में घाव खड़ी हल्दीघाटी है
. . .
आओ लौट सुभाष! न अब दर-दर की ठोकर खानी होगी
आज तुम्हीं को लाल किले पर विजय-ध्वजा फहरानी होगी
आज अमर कवि के स्वप्नों का नंदन उतर पड़ा भूपर
हिमापति खड़ा दहाड़ रहा है किये तिरंगा झंडा ऊपर