भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल तो हमने ही लगाया है, आप चुप क्यों हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:34, 10 जुलाई 2011 का अवतरण
दिल तो हमने ही लगाया है, आप चुप क्यों हैं!
दाँव यह हमने गँवाया है, आप चुप क्यों हैं!
लोग क्या-क्या नहीं कहते हैं, हमें दुनिया में
आपका नाम भी आया है, आप चुप क्यों हैं!
हम अगर कुछ नहीं कहते तो कोई बात नहीं
प्यार आँखों ने जताया है, आप चुप क्यों हैं!
यह तो कहिये कि नज़र क्यों है खोयी-खोयी हुई!
भेद क्या हमसे छिपाया है, आप चुप क्यों हैं!
ऐसे गुमसुम नहीं हमने कभी देखे थे गुलाब
मुँह भी दुनिया ने फिराया है, आप चुप क्यों हैं!