भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:21, 8 जुलाई 2011 का अवतरण
हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती
जो तुम नज़रों से छू देते तो यह दुनिया बदल जाती
उन्हींको ढूँढती फिरती थीं आँखें जानेवाले की
न करते इंतज़ार ऐसे, किसीकी रात ढल जाती
हम उनकी बेरुख़ी को ही हमेशा प्यार क्यों समझें!
कभी तो मुस्कुरा देते, तबीयत ही बहल जाती
उन्हींको चाहते हैं अपने सीने से लगा लें हम
की जिनकी याद आते ही छुरी है दिल पे चल जाती
वे दिन कुछ और ही थे जब गुलाब आँखों में रहते थे
बिना ठहरे ही डोली अब बहारों की निकल जाती