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तन्त्र और जन / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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एक लाश पर ढही हुई औरत
बिलखती है

सिसकते हैं बच्चे
एक भीड़ चिल्लाती है
और ख़ामोश हो जाती है

तन्त्र की बहबूदी के लिए
शहीद हुआ है एक जन

वह एक नहीं पाँच गोलियों से मरा

दारोगा अपना ख़ाली रिवाल्वर
                  फिर भरता है
फिर आदेश देता है अधिकारी
दारोगा अपना ख़ाली रिवाल्वर
                  फिर भरता है ।