Last modified on 19 सितम्बर 2007, at 10:18

शरद के बादल / पंकज सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:18, 19 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज सिंह |संग्रह=आहटें आसपास }} फिर सताने आ गए हैं शरद ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फिर सताने आ गए हैं

शरद के बादल


धूप हल्की-सी बनी है स्वप्न

क्यों भला ये आ गए हैं

यों सताने

शरद के बादल


धैर्य धरती का परखने

और सूखी हड्डियों में कंप भरने

हवाओं की तेज़ छुरियाँ लपलपाते

आ गए हैं

शरद के बादल


(रचनाकाल : 1966)