भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किया इश्क था जो / क़तील

Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:13, 16 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=क़तील शिफ़ाई }} <poem> किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किया इश्क था जो बा-इसे रुसवाई बन गया

यारो तमाम शहर तमाशाई बन गया


बिन मांगे मिल गए मेरी आंखों को रतजगे

मैं जब से एक चाँद का शैदाई बन गया


देखा जो उसका दस्त-ए-हिनाई करीब से

अहसास गूंजती हुई शहनाई बन गया


बरहम हुआ था मेरी किसी बात पर कोई

वो हादसा ही वजह-ए-शानासाई बन गया


करता रहा जो रोज़ मुझे उस से बदगुमां

वो शख्स भी अब उसका तमन्नाई बन गया


वो तेरी भी तो पहली मुहब्बत न थी क़तील

फिर क्या हुआ अगर कोई हरजाई बन गया