फूल सपना है
धरती का
आकाश की ख़ातिर
निस्संग है आकाश पर
खिल आने से उस के
जो एक दिन झर जाएगा
चुपचाप
धरती सँजोएगी उसे
मुर्झाए सपनों से ही अपने
ख़ुद को सजाती है वह
जिन में बसा रहता है
उस का खिलना
सपनों के खिलने-मुर्झाने की
गाथा है धरती—
अपने आकाश की ख़ातिर ।
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15 जून 2010