भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारी आँख / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
हमारी आँख
वह बिन्दु है
फूटती हैं जहाँ से
दस दिशाएँ
नाक की सीध में
जा रहे जो मेरे पाँव
वह मेरी आँख के
इंकार की दिशा है
ham tum