माखन खात हँसत किलकत हरि / सूरदास
राग बिलावल
माखन खात हँसत किलकत हरि, पकरि स्वच्छ घट देख्यौ ।
निज प्रतिबिंब निरखि रिस मानत, जानत आन परेख्यौ ॥
मन मैं माख करत, कछु बोलत, नंद बबा पै आयौ ।
वा घट मैं काहू कै लरिका, मेरौ माखन खायौ ॥
महर कंठ लावत, मुख पोंछत चूमत तिहि ठाँ आयौ ।
हिरदै दिए लख्यौ वा सुत कौं, तातैं अधिक रिसायौ ॥
कह्यौ जाइ जसुमति सौं ततछन, मैं जननी सुत तेरौ ।
आजु नंद सुत और कियौ, कछु कियौ न आदर मेरौ ॥
जसुमति बाल-बिनोद जानि जिय, उहीं ठौर लै आई ।
दोउ कर पकरि डुलावन लागी, घट मैं नहिं छबि पाई ॥
कुँवर हँस्यौ आनंद-प्रेम बस, सुख पायौ नँदरानी ।
सूर प्रभू की अद्भुत लीला जिन जानी तिन जानी ॥
भावार्थ :-- हरि मक्खन खाते हुए हँसते जाते थे , किलकारी मारते थे, (इसी समय जलसे भरा) निर्मल घड़ा पकड़कर उन्होंने देखा । उसमेंअपने प्रतिबिम्बको देखकर यह समझकर कि यह कोई दूसरा छिपा (माखन चुराने या भागनेकी) बाट देखता है, क्रोधित हो गये । मनमें अमर्ष करते हुए, कुछ बोलते हुए नन्दबाबाके पास आये (और बोले) `बाबा! उस घड़ेमें किसीका लड़का (छिपा) है।उसने मेरा मक्खन खा लिया है ।' व्रजराज उन्हें गोदमें लेकर गलेसे लगाते, उनकेमुखको पोंछते, उसका चुम्बन करते उस स्थानपर आये । घड़ेमें अपने बाबाको) उस लड़केको हृदयसे लगाये(गोदमें लिये) श्यामने देखा,इससे और अधिक क्रुद्ध हुएतत्काल श्रीयशोदाजीके पास जाकर बोले -`मैया! मैं तेरा पुत्र हूँ । नन्दबाबाने तो आज कोई दूसरा पुत्र बना लिया, मेरा कुछ भी आदर नहीं किया ।' श्रीयशोदाजीने मनमें समझ लिया कि यह बालकका विनोद है, अतः (श्यामको) उसी स्थानपर ले आयीं और घड़ेको दोनों हाथोंसे पकड़कर हिलाने लगीं; इससे मोहन को अपना प्रतिबिम्ब नहीं मिला । इससे गोपाललाल आनन्द और प्रेमवश हँस पड़े, श्रीनन्दरानी भी इससे आनन्दित हुई ।सूरदासके स्वामीकी ये अद्भुत लीलाएँ जो जानते हैं, वे ही जानते हैं (अर्थात् कोई-कोई परम भक्त ही इसे जान पाते हैं )।