Last modified on 18 मार्च 2012, at 18:41

धूप आँगने आई / अवनीश सिंह चौहान

Abnish (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:41, 18 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवनीश सिंह चौहान |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Po...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

डूबा था इकतारा
मन में
जाने कब से
चाह रहा था
खुलना-खिलना
अपने ढब से
दी झनकार सुनाई

खुलीं खिड़कियाँ
दरवाज़े
जागे परकोटे
चिड़ियाँ छोटीं
तोते मोटे
मिलकर लोटे
नया सवेरा लाई

महकीं गलियाँ
चहकीं सड़कें
गाजे-बाजे
लोग घरों से
आये बाहर
बनकर राजे
गूँजी फिर शहनाई