भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चूना / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:46, 12 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन डंगवाल |संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगव...)
जहाँ पर पड़ा वहीं पर खिल गया चूना
रोनी दीवार पर आहा क्या जगर-मगर कीन्हा ।
- हल्दी के संग लगा चोट पर
- दे दिया मलहम का काम
- कहीं पड़ा अकड़ पान-सुर्ती में तो
- फाड़ डाला सब जीभ-गाल का चाम
बना सगुन ब्याह-सादी में
नाली तक के गुन गाए
भोली डिज़ायनों में भोली आत्माओं के करतब दिखलाए
चमकाया
अंधकार रह न गया सूना !