भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ की याद / वीरेन डंगवाल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 12 जनवरी 2008 का अवतरण
क्या देह बनाती है माँओं को ?
क्या समय ? या प्रतीक्षा ? या वह खुरदरी राख
जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ ?
या यह कि हम मनुष्य हैं और एक
- सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी
जिसमें माँएँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं
बर्फ़ीली चोटी पर,
और सबसे आगे
फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने ।