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रसायनशास्त्री / वीरेन डंगवाल

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सुनते समय उनकी मुद्रा

लगभग रसायनशास्त्रियों वाली थी

अपनी लम्बी उंगलियों और अंगूठे में

लगभग कसे हुए अपना चिकना परुष जबड़ा

क्लैसिकल रसायनशास्त्रियों की तरह ।

फिर कुछ शब्द उन्होंने कहे

आँखों में पहले लगभग हास्य

और फिर तत्काल गम्भीर दिलचस्पी झलकाते हुए

जो दरअसल दैन्य थी ।

कहकर वे चुप हो गए ।

(लिखने का श्रम तो कब का छूट चुका था)

थोड़ी शर्मिन्दगी थी तो

उनके चुप होने में शायद ।