राग सारंग
नंद बुलावत हैं गोपाल ।
आवहु बेगि बलैया लेउँ हौं, सुंदर नैन बिसाल ॥
परस्यौ थार धर्यौ मग जोवत, बोलति बचन रसाल ।
भात सिरात तात दुख पावत, बेगि चलौ मेरे लाल ॥
हौं वारी नान्हें पाइनि की, दौरि दिखावहु चाल ।
छाँड़ि देहु तुम लाल अटपटि, यह गति मंद मराल ॥
सो राजा जो अगमन पहुँचै, सूर सु भवन उताल ।
जो जैहैं बल देव पहिले हीं, तौ हँसहैं सब ग्वाल ॥
भावार्थ :-- माता बड़ी रसमयी (प्रेमभरी) वाणीसे पुकारती है `सुन्दर बड़े बड़े लोचनोवाले गोपाल ! शीघ्र आओ, मैं तुम्हारी बलैया लूँ । तुम्हें नन्दबाबा बुला रहे है, थाल परोसा हुआ है । (बाबा भोजनके लिये) तुम्हारा रास्ता देख रहे हैं; भात ठंडा हुआ जाता है, (इससे बाबा) खिन्न हो रहे हैं, मेरे लाल ! झटपट चलो । मैं तुम्हारे इन नन्हें चरणों पर बलिहारी जाती हूँ, दौड़कर अपनी चाल तो दिखलाओ । यह हंसके समान अटपटी मन्दगति (इस समय छोड़ दो ।'सुरदासजी कहते हैं--(मैयाने कहा,)जो शीघ्रता पूर्वक पहले घर पहुँच जाय, वही राजा होगा । यदि बलराम पहले पहुँचजायँगेतो सब गोपबालक तुम्हारी हँसी करेंगे ।'