राग श्री
जयति नँदलाल जय जयति गोपाल, जय जयति ब्रजबाल-आनंदकारी । कृष्न कमनीय मुखकमल राजितसुरभि, मुरलिका-मधुर-धुनि बन-बिहारी ॥ स्याम घन दिव्य तन पीत पट दामिनी, इंद्र-धनु मोर कौ मुकुट सोहै । सुभग उर माल मनि कंठ चंदन अंग , हास्य ईषद जु त्रैलोक्य मोहै ॥ सुरभि-मंडल मध्य भुज सखा-अंस दियैं, त्रिभँगि सुंदर लाल अति बिराजै । बिस्वपूरनकाम कमल-लोचन खरे, देखि सोभा काम कोटि कोटि लाजै ॥ स्रवन कुंडल लोल, मधुर मोहन बोल, बेनु-धुनि सुनि सखनि चित्त मोदे । कलप-तरुबर-मूल सुभग जमुना-कूल, करत क्रीड़ा-रंग सुख बिनोदै ॥ देव, किंनर, सिद्ध, सेस, सुक, सनक,सिब, देखि बिधि , ब्यास मुनि सुजस गायौ । सूर गोपाललाल सोई सुख-निधि नाथ, आपुनौ जानि कै सरन आयौ ॥
भावार्थ :-- श्री नन्दलाल की जय हो! गोपाल की जय हो! जय हो ! व्रज के गोपकुमारों को आनन्द देने वाले प्रभु की बार-बार जय हो! श्रीकृष्णचन्द्र के सुन्दर मुख में कमल की सुगन्ध शोभा देति है और वंशी की मधुर धवनि करते हुए वे वृन्दावन में क्रीड़ा करते हैं । मेघ के समान श्याम शरीर है, उस पर विद्युत के समान पीताम्बर है और इन्द्रधनुष के समान मयूर पिच्छका मुकुट शोभा देता है । सुन्दर वक्षःस्थलपर वनमाला है, कण्ठ में कौस्तुभमणि है, अंगों में चन्दन लगा है; मन्द हास्य ऐसा है, जो त्रिलोकी की को मोहित करता है । गायों के झुण्ड के बीच में सखा के कंधे पर भुजा रखे त्रिभंगी से खड़े सुन्दर गोपाललाल अत्यन्त शोभा दे रहे हैं । विश्व की कामनाओं को पूर्ण करने वाले उनके नेत्र पूर्ण विकसित कमल के समान हैं, (मोहन की) शोभा देखकर करोड़ों कामदेव लज्जित हो रहे हैं । कानों में चञ्चल कुण्डल हैं, मोहन की मधुर वाणी एवं वंशी की ध्वनि सखाओं का चित्त आनन्दित हो रहा है । मनोहर यमुना-किनारे उत्तम कल्पवृक्षों के नीचे खेल की उमंग में सुखपूर्वक विनोद-क्रीड़ा कर रहे हैं । देवता, किन्नर, सिद्ध,शेष, शुकदेव-सनकादिक ऋषि, शंकर जी तथा ब्रह्मा यह छटा देख रहे हैं; व्यासमुनि ने उनके सुयश का गान (वर्णन)किया है । उन्हीं सुख के निधान गोपाल को अपना स्वामी समझकर सूरदास उनकी शरण में आया है ।