Last modified on 3 जून 2012, at 15:02

मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:02, 3 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर }} {{KKCatKavita‎}} [[Category:...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन

मेघेर परे मेघ जमेछे आँधार करे आसे ।

मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन करते मिलकर अँधियार।
दिया बस मुझे यहाँ का ठौर, यहां एकाकी बैठा द्वार ।।
रोज़ कितने लोगों के बीच किया करता हूँ कितने काम ।
यहाँ बस आज तुम्हारी आस, छोड़कर बैठा सारे काम ।।
न यदि छवि अपनी दिखलाई अगर की मेरी अवहेला,
बताओ काटूँगा कैसे अरे, मैं ये बादल-बेला ।।
जहाँ तक पाता हूँ मैं देख, देखता रहता हूँ अपलक,
प्राण क्रंदन करते मेरे, मिले तो एक तुम्हारी झलक ।।

मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 10 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)