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सावधान / कविता गौड़

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सावधान ओ जंगलवासी
बना रहे हैं तुम्हें जो साथी
बहला-फुसला तुम्हें रहे हैं
सब्ज-बाग वो दिखा रहे हैं
जिनका खुद ईमान नहीं है
ईमान-धरम तुम्हें सिखा रहे हैं
डाल मुसीबत में वो तुमको
अपना धंधा चला रहे है
सांठ-गांठ है पहुंचे हुओं से
तुमको मोहरा बना रहे है
समझो अब तो समझ भी जाओ
इनके झांसे में न आओ
तुम स्वतंत्र हो स्वतंत्र रहोगे
अपने पर से जाल हटाओ
सावधान ओ जंगलवासी
इनके झांसे में न आओे