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खोने को हैं बेताब( हाइकु) /रमा द्विवेदी

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१- ढोती है रात
मनुज की पीडाएं
भोर की आस |

२- मुखौटे लगा
खोने को हैं बेताब
चैटिंग – यार |

३- हैं अनजान
अडोस-पड़ोस से
सर्फिंग -प्यार |

४- ऊषा मुस्काई
भौंरे गुनगुनाए
ताजगी आई |

५- आँगन धूप
भागती फिर रही
छत-मुडेर |

६- आसमां झुक
धरा से कहता ये
तुझ से ही मैं |