भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे कुलहीन रहने दो / शंकर प्रलामी
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:54, 1 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शंकर प्रलामी }} {{KKPustak |चित्र=Mujhe_kulhin_rahne...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मुझे कुलहीन रहने दो /
रचनाकार | शंकर प्रलामी |
---|---|
प्रकाशक | Radhakrishna Prakashan |
वर्ष | 2002 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | हाइकु |
पृष्ठ | 115 |
ISBN | 8171797841 |
विविध | मूल्य(सजिल्द) :115 |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।