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कान्हा के होली / छत्तीसगढ़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

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रंग बगरे हे बिरिज धाम मा
कान्हा खेले रे होली
वृन्दावन ले आये हवे
गोली ग्वाल के टोली
कनिहा में खोचे बंसी
मोर मुकुट लगाये
यही यशोदा मैया के
किशन कन्हैया आए
आघू आघू कान्हा रेंगे
पाछु ग्वाल गोपाल
हाथ में धरे पिचकारी
फेके रंग गुलाल
रंग बगरे हे ...
दूध दही के मटकी मा
घोरे रहे भांग
बिरिया पान सजाये के
खोचे रहे लवांग
ढोल नंगाडा बाजे रे
फागुन के मस्ती
होगे रंगा-रंग सबो
गाँव गली बस्ती
 रंग बगरे हे ...
गोपी ग्वाल सब नाचे रे
गावन लगे फाग
जोरा जोरी मच जाहे
कहूँ डगर तैं भाग
ग्वाल बाल के धींगा मस्ती
होली के हुड्दंग
धानी चुनरी राधा के
होगे रे बदरंग
 रंग बगरे हे ...
करिया बिलवा कान्हा के
गाल रंगे हे लाल
गली गली माँ धुमय वो
मचाये हवे धमाल
रास्ता छेके कान्हा रे
रंग गुलाल लगाये
एती ओती भागे राधा
कैसन ले बचाए
रंग बगरे हे ...
आबे आबे कान्हा तैं
मोर अंगना दुवारी
फागुन के महिना मा
होली खेले के दारी
छत्तीसगढ़िया मनखे हमन
यही हमार चिन्हारी
तोर संग होली खेले के
आज हमार हे बारी
रंग बगरे हे ...
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