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उनये उनये भादरे / नामवर सिंह

उनये उनये भादरे

बरखा की जल चादरें

फूल दीप से जले

कि झरती पुरवैया सी याद रे

मन कुयें के कोहरे सा रवि डूबे के बाद रे।

भादरे।


उठे बगूले घास में

चढ़ता रंग बतास में

हरी हो रही धूप

नशे सी चढ़ती झुके अकास में

तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में

घास में।