भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोटी और संसद / धूमिल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:50, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धूमिल |संग्रह= }} एक आदमी<br> रोटी बेलता है<br> एक आदमी रोटी ख...)
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं--
'यह तीसरा आदमी कौन है ?'
मेरे देश की संसद मौन है।
धूमिल की अंतिम कविता जिसे बिना नाम दिये ही वे संसार छोड़ कर चल बसे ।
शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग।
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोडे से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।