Last modified on 15 अक्टूबर 2007, at 12:52

निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते! / महादेवी वर्मा

59.163.209.5 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:52, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: == निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते! == पंथ को निर्वाण माना, शूल को वरदान जा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते!

पंथ को निर्वाण माना,

शूल को वरदान जाना,

जानते यह चरण कण कण

छू मिलन-उत्सव मनाना!

प्यास ही से भर लिये अभिसार रीते!

ओस से ढुल कल्प बीते!


नीरदों में मन्द्र गति-स्वन,

वात में उर का प्रकम्पन,

विद्यु में पाया तुम्हारा

अश्रु से उजला निमन्त्रण!

छाँह तेरी जान तम को श्वास पीते!

फूल से खिल कल्प बीते!



माँग नींद अनन्त का वर,

कर तुम्हारे स्वप्न को चिर,

पुलक औ’ सुधि के पुलिन से

बाँध दुख का अगम सागर,

प्राण तुमसे हार कर प्रति बार जीते!

दीप से घुल कल्प बीते!