भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विनती / रामचंद्र शुक्ल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:47, 2 जून 2013 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=रामचंद्र शुक्ल }} {{KKCatKavita}} <poem> जय जय जग नायक...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जय जय जग नायक करतार।
करत नाथ कर जोरि आज हम विनती बारम्बार।
प्रात समीर सरिस भारत महँ हिन्दी करै प्रसार ।।

जय जय जग नायक करतार।
खोलै परखि उनीदे नयनन दरसावैं संसार।
बुधा हिय सागर बीच उठावै भाव तरंग अपार ।।

जय जय जग नायक करतार।
देश देश के मृदु सुमनन सों भरि सौरभ को थार।
बगरावै यदि भूमि बीच जो हरै समाज विकार ।।

जय जय जग नायक करतार।
मेटे सब असान ताप करि शीतलता संचार।
विविध कला किसलय कल रणदरावै प्रतिद्वार ।।
जय जय....